बुधवार, 10 अगस्त 2011

पहाड़ में मॉस हिस्टीरिया



जो मन चाहे तो जर्रे को खुदा कर ले , जो मन चाहे तो भ्रम को भूत बना डाले । और भूत की कोई शक्ल नहीं होती , जितना रो ये उतना ही हावी होता जाता है । पहाड़ी स्थलों में आजकल स्कूलों में बहुत सारे बच्चे अजीब अजीब सी हरकतें करते हुए , चीख कर बेहोश होते हुए , अनर्गल प्रलाप करते हुए पाए गए । किसी एक को ऐसा करते हुए देख कर थोड़े और बच्चे भी वैसा ही करने लगे । अभिभावकों और शिक्षकों की चिंता स्वाभाविक है । डॉक्टरों और झाड़-फूँक करने वालों को बुलवाया गया । डाक्टरों ने इसे मॉस हिस्टीरिया नाम दिया । कुछ शिक्षकों व् अभिभावकों ने माना कि बच्चे तनाव में थे ।
ज़रा ध्यान दें कि ऐसा हर साल नए सत्र की शुरुवाद में ही क्यों होता है और पहाड़ में ही क्यों होता है । बच्चे जब लम्बी छुट्टियों के बाद स्कूल जाना शुरू करते हैं तो कुछ तो पढाई का तनाव , कुछ छुट्टियों की मौज-मस्ती खत्म होने का अवसाद और सबसे बड़ा कारण पहाड़ में फैले हुए अन्धविश्वासों पर आँख मूँद कर विशवास कर लेने का है । पहाड़ों में रतजगा करके , जागर लगा कर , ढोल बजाते और गाते हुए देवता बुलाने का रिवाज है । जिसके सामने लोग अपनी अपनी समस्याएं रखते हैं । इसमें कितनी सच्चाई है ये तो पता नहीं मगर इलाज करते हुए आस्था और विश्वास से कई लोग खुद को चंगा होते हुए महसूस करते हैं , इसका उल्टा भी हो सकता है ...जब किसी व्यक्ति को किसी भूत-प्रेत का साया बता दिया जाए या किसी का टोना टोटका बता दिया जाए तो उसका वहम किसी सीमा तक भी जा सकता है । भूत प्रेत अगर आत्मा होते हैं तो उन्हें शरीर धारी कैसे देख सकते हैं ?




कुछ लोगों ने जोर दे कर कहा कि भूत प्रेत होते हैं और कभी कभी जिसकी बर्बादी पर आ जाएँ सारा तहस नहस कर डालते हैं । विद्या कला संगम ग्रुप की अध्यक्षा बच्चों को लेकर प्रोग्राम करने चाँपी ओखल कांडा गईं । चाँपी से ये लोग ओखल कांडा पहुंचे , यहाँ पहुँच कर एक लड़की कुछ ज्यादा चीखने लगी ...उसके साथ साथ दो और लड़कियां एब्नोर्मल सा व्यवहार करने लगीं । हालत बेकाबू होते देख कर डॉक्टर को बुलवाया गया , डॉक्टर ने शारीरिक तौर पर उन्हें स्वस्थ्य बताया । अब इतनी छोटी और पिछड़ी जगह ...लोगों ने भूत उतारने वाले को बुलवाया और कहा कि चाँपी में जिस स्कूल में आप रुके थे वो तो है ही अंग्रेजों के कब्रिस्तान के ऊपर ...वहाँ तो आए दिन बच्चों के साथ ऐसा होता रहता है । अब उस ओझा ने आकर जो कुछ भी किया उस का सार ये है कि एक आत्मा इसके ऊपर आई है क्योंकि ये सज धज कर दो अन्य लड़कियों के साथ गधेरे में घूमने गई थी । मुर्गे की बलि व् कुछ अन्य सामान चढ़ा कर मुक्ति मिलेगी । खैर राम राम करते हुए अपना आगे का दौरा कैंसल करते हुए ये लोग वापिस लौट आये ।




यहाँ हमें कुछ और संभावनाओं पर गौर कर लेना चाहिए । एक सम्भावना ये कि हो सकता है कि इन लड़कियों ने गधेरे में घूमते वक्त लोगों से ये सुन लिया होगा कि ये स्कूल कब्रिस्तान के ऊपर बना है या ये कि आत्माएं यहाँ पढने वाले बच्चों के ऊपर आतीं हैं । हमारा अपना मन किसी भूत से कम नहीं है ; ज़रा सा भी ऐसा वहम हल्की सी आहट को भी भूत समझ लेता है । दूसरी सम्भावना ये है कि इस के साथ साथ ओझा हिप्नोटिज्म जानता हो , आपके मन की बात के साथ साथ कहानी गढ़ कर कहलवा ले । मनोविज्ञान के पास हैल्यूसिनेशन के कितने ही किस्से मौजूद हैं । उम्र दराज लोग काले इल्म के बारे में भी बहुत कुछ बताते हैं ।




सँगीत ऐसी शय है जिसमें मन प्राण झूमने लगते हैं । एक पूजा में मैंने पहली बार कीर्तन आरती के वक्त चार औरतों को झूमते हुए देखा , बाकी औरतों ने झुक झुक कर आशीर्वाद लेना शुरू किया और अपनी समस्याएं कहीं । वो उत्तर भी दे रहीं थीं । जो दो औरतें पास पास थीं , उनमें से एक ने दूसरी से कहा ' तू नाटक मत कर तू देवी नहीं है ' , उसके गुस्से से ये औरत सहम गई और माफी मांगने लगी ...अब इसे क्या कहें ? अगर किसी की भावनाएं आहत होती हों तो मुझे माफ़ करें , मेरा उद्देश्य आँखें खुलवाने का है । जब भी लोग ज्योतिषियों , ओझाओं , झाड़-फूँक वालों के पास जाते हैं ...ज़रा ध्यान से देखें ...वो तरह तरह की बातें करके आपकी दुखती रगें छेड़ कर आपकी समस्या आपके ही मुंह से उगलवाते हैं ; तरह तरह की पूजाओं के बहाने आपकी जेब ही खाली करवाना चाहते हैं । उनका तो ये व्यवसाय है और आप नाहक अपनी भावनाओं से खिलवाड़ कर अपना वक्त और ऊर्जा गँवा रहे हैं ।
खुदा सबसे बड़ा है , जब उसका प्रकाश हमारे अन्दर है , तो कोई नकारत्मक ऊर्जा हम पर असर नहीं कर सकती , न किसी दूसरे आदमी की नकारात्मकता और न ही कोई अदृश्य शक्ति ...मैं आप परमानन्द मैनूं ब्रह्म गवंदा ...यानि मैं खुद परम आनंद हूँ , मेरी महिमा ब्रह्म भी गाता है ....सिर्फ अहसास करने भर की देरी है ।




धार्मिक होने की जगह अध्यात्मिक बनें ...हर धर्म वैसे भी यही सिखाता है ...ठोकरें तो हमारे कर्मों के परिणाम स्वरूप हैं या फिर हमें सिखाने के लिए हैं । जहाँ ऐसा विश्वास आने लगता है ,आदमी विवेक से काम लेने लगता है , डर भागने लगता है , डर है ही विश्वास का अभाव । आध्यात्मिकता एक हद तक निडरता लाती है ।
जब तक अभिभावक खुद मजबूत नहीं होंगे , बच्चों के कोमल मन को उनके ही अंतर्मन का आधार नहीं दे सकेंगे । संवेदनाओं को सही दिशा देनी चाहिए । बच्चों को प्रेरणा दायक , सृजनात्मक कार्यों में संलग्न रखना चाहिए ; क्योंकि मन को लुढकने में देर ही नहीं लगती चढ़ाई पर ऊपर लाने में कठिन प्रयत्न करना पड़ता है । हमारे विचार ही हमारी दुनिया रचते हैं । कभी तो इंसान ठोकर से भी प्रेरणा ले लेता है और कभी छोटी सी बात से भी मन गिरा कर बैठ जाता है . ये मन की ही महिमा है जो इंसान को सफलता के उच्चतम शिखर पर ले जा सकती है । सबसे बड़ी बात ...बाहरी उन्नति किस काम की , जो अन्दर दिल ही बैठा जा रहा हो ।