गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

पहली कविता , जैसे कोई सीख


हमेशा से बहुत संवेदन-शील थी , पचास साल की उम्र में अचानक कलम उठाई और लिखना शुरू कर दिया |
पहली कविता यही थी


रे मन तू क्यों भूल गया
हर ओर उसी की छाया है
हर ओर उसी का आनँद है


आशाओं ने हैं जाल बुने
निराशा के भँवर में फँसाया है
अन्धकार में मन भरमाया है
रे मन , तू क्यों भूल गया


सौगातें तुझे बिन माँगे मिलीं
उपलब्धियों से तेरी झोली भरी
पर तुझे सदा खाली ही दिखी
रे मन , तू क्यों भूल गया


सीमाओं को न आड़ बना
निर्मल मन से देना सीख जरा
इसमें भी मैं , उसमें भी मैं ,
इसमें भी वो , उसमें भी वो
रे मन , तू क्यों भूल गया