रविवार, 10 अप्रैल 2011

शब्द के हाथ न पाँव रे


सँसार ये कहता है कि जो आज दोस्त है वो कल दुश्मन भी हो सकता है , इसलिए भरोसा मत रखो ; और अध्यात्म ये कहता है कि जो आज दुश्मन है वो कल दोस्त भी हो सकता है , इसलिए भरोसा रखो , ईश्वर पर भी और इस बात पर भी कि आदमी के मन को बदलने में देर नहीं लगती । ऐसा न हो कि कल जब वो दोस्ती का हाथ बढ़ाये तो हमें बगलें झाँकनी पड़ें । अध्यात्म के हिसाब से तो कोई दुश्मन है ही नहीं , जब तक एक भी लकीर मन पर रहेगी , न परमात्मा के दर्शन होंगे न ही चित्त शान्त रह सकेगा ।
तो हम ऐसी फसलें क्यों बोयें जो काटते वक्त विष स्वरूप हों , और हमें खुद पर शर्म आये । किसी ने सच ही कहा है ...
एक शब्द मरहम बने
एक शब्द करे घाव रे
शब्द के हाथ न पाँव रे
मन में पैदा हुए भावों की अभिव्यक्ति फलस्वरूप शब्द तो जुबान से निकलते हैं । यानि अपने भावों को ही सही दिशा देना सीख लिया जाए । न्याय की सृष्टि में मेरे साथ जो हो रहा है , सब ठीक है । भरोसा मन की खुराक है , बेशक आदमी की जुबान पर मिलता है , यानि आदमी की जुबान करोड़ों की है ...सुकून देने वाली ...अभिव्यक्ति का माध्यम । प्रेम की ताकत सबसे बड़ी ताकत है , जिसके सामने तलवारें भी झुक जातीं हैं । इस ताकत के सामने इंसान तो क्या खुदा को भी झुकना पड़ता है ।

यहाँ मैं खुदा से मुखातिब हूँ ....
इतना ठोका , खोल अलग कर दिया गिरी से
मालिक तुझको हर ठोकर पे सलाम

देख सकें हम तेरी माया और कर्मों का लेखा-जोखा
काँटों में भी फूल खिलाएँ , तेरे हर मन्जर को सलाम

बैठे थे जिस डाल पे हम
काट रहे थे उसी डाल को , लेकर तेरा तेरा नाम

हर दिल में तेरा डेरा है , स्याही तो सब तेरी है
कलम चलाता है इन्सां , लेकर अपना अपना नाम

हाथ सधे हैं चोट भी सँभली
भर जायेंगी सारी दरारें , मरहम है तेरे हाथों में तमाम