मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

इक चन्न आसमानी , दूजा मेरे कोल खड़या ...

करवा-चौथ नजदीक ही है , क्या जाने कब किसी के मन ने ये गीत गाया होगा और फिर धीरे से इसे सारी दुनिया ने गुनगुनाया होगा । इक चन्न आसमानी , दूजा मेरे कोल खड़या ...एक चाँद आसमान का है , दूसरा मेरे पास खड़ा .... श्रेय तो लिखने वाले को ही जाता है , मगर ये क्या कि सारी दुनिया उस नाजुक ख्याल को जी लेती है , उसी तर्ज़ पर कुछ लम्हों के लिये झूम लेती है , या कहिये सुकून के घूँट पी लेती है । नाम याद रहे या नहीं , गीत दुनिया का हो जाता है , इस से बड़ी सार्थकता क्या होगी उस रचने वाले के शब्दों के जुनूँ की अनुभूति की ।

नीरज जी के ब्लॉग पर डॉक्टर कविता किरण की यादगार पंक्तियाँ _

हम से कायम ये भरम है वरना

चाँद धरती पर उतरता कब है

बालस्वरूप राही जी का शेर _

एक धागे का साथ देने को

मोम का रोम रोम पिघलता है

खुद नीरज जी का ये शेर _

धूप दहलीज से कमरों में उन्हीं के पहुँची

खोल दरवाजे घरों के जो रखा करते हैं

शमा जी के ब्लॉग ' सिमटे लम्हें ' और ' बिखरे सितारे पर' _

पास आने के सौ बहाने करने वाले

दूर जाने की एक वजह तो बता

और

मेरे घर में झाँकती

किरणों में उजाला नहीं

इसी कड़ी में इंद्र मोहन मेहता ' कैफ ' साहेब का एक शेर _

मेरे बेटे मेरे बाप की छत के नीचे सोये हैं

मेरी बेटी खड़ी हुई है धूप से जलते आँगन में

कितनी पीड़ा का अहसास है । कितना सही कहा है ...

जाकी रही भावना जैसी

प्रभु मूरत देखी तिन तैसी

कहते हैं सुन्दरता देखने वाले की आँख में होती है , यानि दृष्टिकोण ही सब कुछ है ।

प्यास सभी को उसी घूँट की

जैसे जीवन हो मधुशाला

इन पंक्तियों को लिखते वक्त मैं सोच रही थी कि ...  लड़खड़ातेलड़खड़ाते हुए , संभलते हुए , गुनगुनाते हुए या कुनमुनाते हुए , जिन्दगी के जाम से सबको उसी घूँट की तलाश है , समझ तो नहीं आता .....किसी ने उसे अध्यात्म से जोड़ा ..सब ने अपने अपने ढंग से उसका अर्थ लगाया होगा । मगर जो मैंने कहना चाहा , वो है , सबको बेशर्त प्यार ( अनकंडीशनल लव ) का घूँट चाहिए , जिसका असर ..सुरूर जिन्दगी भर न छूटे ।

वो मिलता ही नहीं , हाँ मगर हम दे तो सकते हैं ।

तुम्हारे सीने से उठता धुआंपाठ रंग

हमारे दिल से गुजर रहा है

क्यूँ हम इन पंक्तियों को महसूस नहीं कर सकते ?