शनिवार, 1 मई 2010

टिप्पणियों की चाह

जरुरी नहीं कि उत्कृष्ट लेखन पर भी आपको बहुत टिप्पणियाँ मिलें । टिप्पणियाँ पाने के लिए , ध्यान दिलाने के लिए अपनाए गए हथकण्डों से मन को क्षणिक तृप्ति मिल सकती हैइस सब में भटक कर क्या हम अपना असली मकसद भूल नहीं गए ! हमारा लिखा हो सकता है बहुत लोग पढ़ पाए हों , या हो सकता है पढ़ भी लिया हो तो टिप्पणी लिखने का वक्त बचा हो या कई बार नेट की , कम्प्यूटर की गड़बड़ भी सामने आती हैबिना किसी दबाव के पाई गयी टिप्पणियाँ ही सार्थक हैं

लेखन एक शौक की तरह उभर कर सामने आता है और धीरे से हमारी आवश्यकता बन जाता हैबिना लिखे रहा नहीं जाता , मगर लिखा अपने आप जाता हैयानि ख्याल ही हमारी ताकत बन जाता हैहमारे आस-पास जीते जागते लोग जो हमारी आज की स्थिति के लिए जिम्मेदार होते हैं यानि हमारे लेखन का बहुत कुछ दारोमदार परोक्ष या अपरोक्ष रूप से उन पर भी होता है ; उन्हें हम अनदेखा कैसे कर सकते हैं ! ब्लॉग अपने कर्तव्यों से बढ़ कर नहीं है , रिश्तों की खटास के असर से लेखन अछूता नहीं रह सकेगाटिप्पणियों की प्रतिक्रिया स्वरूप हौसला अफजाई तो होती है , मगर टिप्पणियों को बहुत ज्यादा महत्व नहीं दिया जाना चाहिए , इससे हम उलझ कर अपने उद्देश्य से भटक जायेंगेदमदार लेखन तो खुद ही बोल उठेगासराहना भी हो तो भी दिल छोटा नहीं करना चाहिए

हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है
तब जाकर कहीं होता है , चमन में दीदावर पैदा

वो आँख वाला तो किस्मत से पैदा होता हैहमें तो अपना अपना काम करते चलना हैये भी सच है ' लगती है एक उम्र , तेरी जुल्फ के सर होने तक ' । अचानक की उम्मीद नहीं कर सकते , तपने में वक़्त तो लगता है

टिप्पणियों के लिए तो ये ही कहा जा सकता है ....उलझ मत दिल बहारों में , सहारे टूट जाते हैं , सहारों का भरोसा क्या ........आधार तो अपने अन्दर है