गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

उस अजनबी शहर में


६ अप्रैल ०९
नारियल के ऊँचें-ऊँचें पेड़ , कॉपर युक्त मिट्टी के आयताकार खेत , आस पास छितराये से घर और कहीं कहीं पत्थर के पहाड़ .....सिलिकोन सिटी या आई टी सिटी के नाम से मशहूर ये शहर ... जैसे ही प्लेन के पहियों ने बेंगलोर की धरती छोड़ी .....दिल जो पक्का किया हुआ था अचानक बैठने लगा .....पौने तीन घंटे की उड़ान और हजारों मील पीछे छूट जायेगा मेरे जिगर का टुकड़ा ।
बेटी पहली बार इतनी दूर रहने नहीं आई थी , मगर पिछले सवा साल से वो इतनी पास आ गई थी कि हम कई बार मिले । कहते हैं हम दूसरे को नहीं अपने सुखों को रोते हैं ,तो इसे क्या कहूँ , अपने बच्चों को जल्दी जल्दी देख पाने के सुख से वंचित हो गई हूँ । तीनों बच्चे उड़े तो एक ही डाल पर बैठ गये ....बस कभी वो हमारी तरफ आते और कभी हम उनसे मिलने जाते पर अब ये बड़ी चिड़िया ने लम्बी उडारी भर ली ।


मैं क्यों अपनी संवेदनाओं की बेड़ियाँ बच्चों के पैरों में डालूँ । अकेले छोड़ आने का अहसास तो तीन दिन पहले दोनों को हो गया था ..जब बेंगलोर में मेरे छह दिन के प्रवास में आधे दिन बीत जाने पर उल्टी गिनती का अहसास हो गया था । लाख रोकने पर भी आँखें छल-छला आईं । जब मन चतुराई करे तो मन को आत्मा की राह दिखानी पड़ती है वरना मन नहीं मानेगा और जब मन हाथ पैर छोड़ दे तो उसे बाहर की राह यानि दुनिया की राह दिखानी पड़ती है , अब सोचना ये था कि सफलता की सीढियां ऐसे ही चढ़ी जाती हैं ....मैं कोई अकेली माँ नहीं हूँ जिसने अपने बच्चों को दूर भेजा है ..ये दुनिया का दस्तूर है ..वगैरह ....वगैरह ... आँख खोल कर आस पास देखा , एक लेडी अपनी छह महीने की पोती के साथ अकेले श्रीनगर तक की यात्रा के लिये मेरी साथ वाली सीट पर बैठी हैं । ये एक हौपिंग फ्लाईट थी .., शायद उन्हें मेरी मदद की जरुरत थी ....उन्हें बच्ची के लिये दूध बनाना था ....आगे बढ़ कर मैंने बच्ची को उठा लिया , इस तरह कुछ बात शुरू हो गई और उन्होंने बताया कि श्रीनगर में उनका घर और बिजनेस है और बहू वहीं इंजीनियरिंग की परीक्षा देने गई हुई है , और वो खुद पोती के साथ सर्दी भर अपने छोटे बेटे के पास बेंगलोर रहीं थीं , अब बच्चों को यानि बेटे बहू को अपनी बच्ची की याद सता रही है इसलिए वो उसे लेकर लौट रहीं हैं । बच्ची को उन्होंने सोने की चूड़ियाँ पहना रखीं थीं , यानि बच्ची चाँदी के चम्मच के साथ पैदा हुई थी । वो बता रहीं थीं कि जब वो पैदा हुई तो बहुत कमजोर थी , उन्होंने व् उसके डॉक्टर ने बहुत मेहनत करके उसे स्वस्थ्य बनाया है । नई और पुरानी संस्कृति का मेल कुछ इस तरह देखकर अच्छा लगा और मैंने देखा कि मेरा मन लग रहा है , सचमुच बाहर की दुनिया से तालमेल बैठाए बिना हम चल नहीं सकते , तो मन को बाहर की राह दिखा दे वरना मन अड़ जायेगा कुछ देर के लिये बच्ची सो गई फिर मैं अपनी बेटी की याद में डूब गई ये कुछ पंक्तियाँ तो मन पहले से ही गुनगुना रहा था .....
ऐ मेरे जिगर के टुकड़े
उस अजनबी शहर में
अकेला नहीं है तू
तेरे आस पास
मेरी दुआओं का घेरा है
जब जब अकेले होना
झुक के तू झाँकना दिल में
अन्दर कहीं हूँ मैं भी
मुड़ के तू देखना पीछे
तेरे साथ-साथ हूँ मैं
तेरे आगे आगे
उजाले की रोशनी है
बस वहीं वहीं
मेरा दिल धड़कता है
खुदा करे
कि तुझे झुक कर , मुड़ कर
न देखना पड़े
उजाले हों इतने बिखरे
एक तू और दूसरे उजाले
अकेला कहाँ है तू

रविवार, 21 नवंबर 2010

चुभा-चुभा सा है कुछ


एक जोड़ी आँखें दूसरी मँजिल की खिड़की से देख रही हैंसामने एक घर का आँगन है , दरवाजा गली में खुलता है , सुबह का वक्त है , एक मेहमान परिवार बड़ी सी अटैची लिये हुए घर में दाखिल होता हैबच्चों के सिर थपथपा कर घर के बड़े लोग मेहमानों का स्वागत करते हैं


दो ही घंटे बाद दो निरीह जानवर प्लास्टिक की रस्सियों के साथ घर की बैठक की खिड़की से आँगन में बंधे नजर आते हैंएक तसले में हरी हरी घास डाल दी गई है , जिसमें वो मुहँ चला रहे हैंअगली सुबह जानवरों की अजीब अजीब सी आवाजें कानों में पडतीं हैं , नींद खुल जाती हैआँखें खिड़की पर नमूदार होतीं हैं , दोनों जानवर अपनी जगह पर नहीं हैंआँगन पूरा धुला हुआ गीला गीला सा है , दूसरे घर की छत से एक बिल्ली ऐसे बैठी देख रही है जैसे साँप सूँघ कर गया होएक पन्द्रह सोलह साल का लड़का कभी प्लास्टिक की रस्सी गली में ले जाता है ; कभी पानी का पाइप ले जाता हुआ नजर आता हैऊपर आसमान में कौए इक्का-दुक्का मँडराते हैं ; कभी बिजली के खंभों पर नजर आते हैंआँगन में धूप पसर आई है


थोड़ी देर बाद ही एक जानवर फिर आँगन में खिड़की से बँधा नजर आता है ; बार बार घर के प्रवेश द्वार पर लगे पर्दे से मुहँ मार मार बाहर निकल जाना चाहता हैबिल्ली अब तीसरे घर की छत पर जाकर बैठ गई है , सोई नहीं है , सिर पूरा तना हुआ है , लगता है आज बिल्ली छत से नीचे नहीं उतरेगीइतने में क्या देखा कि वही निरीह जानवर कमरों की आड़ में एक अमरुद के पेड़ के साथ बंधा खडा हैरस्सी से उसके दोनों अगले पैर बाँध दिए गए हैं ,और फिर पिछले दोनों पैर , अब वो जमीन पर गिरा है , अब मुँह को बाँधा जा रहा है ...अब आगे और देखना इन एक जोड़ी आँखों को गवारा न हुआ । खिड़की का पर्दा खिसका कर धम्म से सोफे पर बैठ गईंइन आँखों में उन हाथ वालों के दिल परिवर्तित करने का दम नहीं है


कोई आवाज नहीं ...आत्मा से परमात्मा का मिलन ...कोई ऐसे भी क्या दुनिया से जाता है , किसी की आँख में आँसू , कोई दिल है नम !... इन एक जोड़ी आँखों से कुछ आँसू ढुलक आते हैंकन्चों सी चमकती वो आँखें , रातों को पूछती हैं ...कुसूर क्या था मेरा ...बड़ी मछली छोटी को खा जाती है , समँदर का दिल बड़ा नहीं हो सकता क्या ?


मन भी एक बिल्ली सा
दूर की छत से निहारता है
चूहे को सामने लाओ
कैसे झपट्टा मारता है

मन भी तो एक तसला
हरी हरी सी घास के
बहकावे में आ के भूला
रीता रीता सा है सब कुछ
किस चुग्गे में मुँह मारता है

मन भी तो एक कौआ
बोटियों पे क्यूँ मँडराता है
वश चलता नहीं है कुछ भी
खम्भों तारों को ही झकझोरता है

मन भी तो निरीह जानवर
मुँह हाथ पैर हैं बंधे
डोरी है किसके हाथ में
खूँटा तुड़ा के भागता है

मन भी तो है धूप सा
अपने हिस्से की छाया ढूँढता है
चुभा-चुभा सा है कुछ
राहत का सामाँ ढूँढता है

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

इक चन्न आसमानी , दूजा मेरे कोल खड़या ...

करवा-चौथ नजदीक ही है , क्या जाने कब किसी के मन ने ये गीत गाया होगा और फिर धीरे से इसे सारी दुनिया ने गुनगुनाया होगा । इक चन्न आसमानी , दूजा मेरे कोल खड़या ...एक चाँद आसमान का है , दूसरा मेरे पास खड़ा .... श्रेय तो लिखने वाले को ही जाता है , मगर ये क्या कि सारी दुनिया उस नाजुक ख्याल को जी लेती है , उसी तर्ज़ पर कुछ लम्हों के लिये झूम लेती है , या कहिये सुकून के घूँट पी लेती है । नाम याद रहे या नहीं , गीत दुनिया का हो जाता है , इस से बड़ी सार्थकता क्या होगी उस रचने वाले के शब्दों के जुनूँ की अनुभूति की ।

नीरज जी के ब्लॉग पर डॉक्टर कविता किरण की यादगार पंक्तियाँ _

हम से कायम ये भरम है वरना

चाँद धरती पर उतरता कब है

बालस्वरूप राही जी का शेर _

एक धागे का साथ देने को

मोम का रोम रोम पिघलता है

खुद नीरज जी का ये शेर _

धूप दहलीज से कमरों में उन्हीं के पहुँची

खोल दरवाजे घरों के जो रखा करते हैं

शमा जी के ब्लॉग ' सिमटे लम्हें ' और ' बिखरे सितारे पर' _

पास आने के सौ बहाने करने वाले

दूर जाने की एक वजह तो बता

और

मेरे घर में झाँकती

किरणों में उजाला नहीं

इसी कड़ी में इंद्र मोहन मेहता ' कैफ ' साहेब का एक शेर _

मेरे बेटे मेरे बाप की छत के नीचे सोये हैं

मेरी बेटी खड़ी हुई है धूप से जलते आँगन में

कितनी पीड़ा का अहसास है । कितना सही कहा है ...

जाकी रही भावना जैसी

प्रभु मूरत देखी तिन तैसी

कहते हैं सुन्दरता देखने वाले की आँख में होती है , यानि दृष्टिकोण ही सब कुछ है ।

प्यास सभी को उसी घूँट की

जैसे जीवन हो मधुशाला

इन पंक्तियों को लिखते वक्त मैं सोच रही थी कि ...  लड़खड़ातेलड़खड़ाते हुए , संभलते हुए , गुनगुनाते हुए या कुनमुनाते हुए , जिन्दगी के जाम से सबको उसी घूँट की तलाश है , समझ तो नहीं आता .....किसी ने उसे अध्यात्म से जोड़ा ..सब ने अपने अपने ढंग से उसका अर्थ लगाया होगा । मगर जो मैंने कहना चाहा , वो है , सबको बेशर्त प्यार ( अनकंडीशनल लव ) का घूँट चाहिए , जिसका असर ..सुरूर जिन्दगी भर न छूटे ।

वो मिलता ही नहीं , हाँ मगर हम दे तो सकते हैं ।

तुम्हारे सीने से उठता धुआंपाठ रंग

हमारे दिल से गुजर रहा है

क्यूँ हम इन पंक्तियों को महसूस नहीं कर सकते ?

शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

रैगिंग और चाचा नेहरु के फूल



कल टेलीविजन में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा एक नए छात्र की रैगिंग का दृश्य देखा शुरुआती दौर में रैगिंग का असली उद्देश्य था , नए छात्रों का पुराने छात्रों से महा-विद्यालय के वातावरण से परिचय मेलजोल ताकि वो खुद को अपरिचित माहौल में भी सहज महसूस कर सकें पता नहीं कब ये स्वस्थ्य दृष्टिकोण हमारी नई फसल के अमानवीय चेहरे में बदल गया गाँव-कस्बों से आने वाले छात्र , माँ-बाप की छात्र-छाया से स्कूल के सहपाठियों से विलग होने का दंश झेलने के साथ-साथ नए अपरिचित वातावरण में खुद को ढालने की कोशिश , सुनहरे भविष्य की कल्पना की डोरी थाम जब महाविद्यालय में प्रवेश करते हैं , तो उन्हें पता नहीं होता कि रैगिंग के ऐसे वीभत्स चेहरे को भी उन्हें झेलना पड़ेगा कच्ची उम्र कच्चे बर्तन की तरह होती है , ज्यादा जोर से ठोकने पर बर्तन टूट भी सकता है बचपन की अच्छी या बुरी घटनाएँ-दुर्घटनाएँ सारी उम्र जेहन में साथ चलतीं हैं ; प्रतिक्रियाएँ व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होती हैं प्राण-शक्ति का टूटना किस किनारे पर ला खडा करेगा ?


सीनिअर छात्र खुद भी इस प्रक्रिया से गुजरे होते हैं , तो क्या वो अपना दबा हुआ प्रतिशोध नए छात्रों से ले रहे होते हैं इसे कुँठा कहें , मतिभ्रम कहें या फिर पर-पीड़ा में आनंद लेने वाली वृत्ति कहें ; मनोवैज्ञानिक तो इन्हें बीमार करार देंगे जो काम विद्यालय प्रशासन से छिपा कर किया जाए वो निसंदेह अपराध की श्रेणी में आएगा ढिठाई की हद देखिये जब उसी का एम.एम.एस.बना कर पूरे विद्यालय में सर्कुलेट किया जाता है जैसे बहादुरी की मिसाल कायम की हो । हमारी यूथ भटक गयी है , जब अपने ही जैसे जीवन को हाड़-माँस का पुतला समझ लिया जाता है , इसे और क्या कहेंगे , मेरा खून खून है और उसका खून पानी ? प्रशासन अगर इन्हें रेस्टिकेट भी करता है तो इनका भविष्य भी दाँव पर लग जाता है । अनुशासन-हीनता , उद्दंडता का जो पाठ इन्होंने चोरी-छिपे रैगिंग करने के दौरान सीखा अब वो खुले आम अभ्यास में लायेंगे । डर से अनुशासित रहा जाता है और प्यार से जिन्दगी चलती है । ऐसी दुर्घटनायें जीवन में हमेशा के लिये अंकित हो जाती हैं ; कैक्टस बो कर ये अपनी जिन्दगी को रेगिस्तान बना लेंगे और आत्मा तक लहुलुहान होते रहेंगे ।
आध्यात्मिकता ,आत्मिक शांति के लिये प्रसिद्द बापू के इस देश में काँटों की ये नई फसल तैयार होती नजर आ रही है । फ्रेशर्ज की जगह एक दिन उन्हीं के छोटे भाई-बहन या बच्चे भी खड़े हो सकते हैं , उनका शिकार बनना कैसा लगेगा , ये सोच कर नहीं देखा होगा इस नई फसल ने । अपनी ही शक्तियों को ये भूल गए हैं ...किसी जीवन को उठा न सकें तो उसके भविष्य से खिलवाड़ भी न करें ...वो बन सकता था खुदा , अपनी कीमत उसने खुद ही , कमतर आँक ली होगी ।
बापू के इस देश में
चाचा के नेहरु के फूल सरीखे
काँटों में तब्दील हुए
पंगु हुई है नैतिकता
नस-नस से हैं बीमार हुए
भूल गए हैं अपना दम
किस साजिश के हैं शिकार हुए
सपने सारे बेमायने हैं
जो खुशबू से न सराबोर हुए
मत छीनो धरती क़दमों से
आसमाँ भी न यूँ मेहरबान हुए

बुधवार, 8 सितंबर 2010

बातों में नमी रखना


जो शान्त भाव से सहन करता है , वही गंभीर रूप से आहत होता है ।
_रवीन्द्र नाथ टैगोर


भला क्यों , शायद इसलिए कि वो प्रतिक्रिया नहीं देता , उसका गुस्सा उसके अन्दर ही उबाल मारता रहता है , उसे कोई रास्ता नहीं मिलताइसलिए भी कि वो मूक हो कर ( ऊपरी तौर पर ) ध्यान से वस्तुस्थिति को पढ़ रहा होता हैअगर मन शान्त होता तो आहत नहीं होता ; और ये टूटन कहीं कहीं तो प्रतिक्रिया स्वरूप जरूर निकलेगीमन की संवेदन-शीलता को हमेशा सृजन का रास्ता दिखाना चाहिएहर विषमता को सबक की तरह लेकर , उस से निबटने में अपना पुरुषार्थ करना चाहिएकहते हैं चोर से नहीं चोरी से घृणा करोचोर को सुधारने के लिये उसके दिल को बदलना होगा , जहाँ चोरी करने का विचार पैदा हुआउसके परिस्थिति जन्य कारणों को खुली आँख से देख कर शायद हम उसे माफ़ कर सकें , और खुद आहत होने से बच पायें


हमारी संवेदन-शीलता किस कदर भटक गई है कि आदमी अपने ही बच्चों तक को नहीं बख्शताकल अखबार में पढ़ा कि एक पिता ने अपने तीन-चार साल के बच्चे को इतना पीटा कि वो मर गया ; सिर्फ इसलिए कि बच्चे ने उसके मोबाइल पर पानी डाल दिया थामोबाइल शायद बच्चे से ज्यादा जरुरी था ! आज भौतिकता नैतिकता से ज्यादा आगे हो गई है , इसी लिये मानवीय मूल्य गिर गए हैंहमें बच्चों से कहना चाहिए कि पैसे को हमेशा रिश्तों से सेकेंडरी रक्खें ; क्योंकि पैसा तो हमारी किस्मत का कोई हमसे छीन ही नहीं सकता और रिश्ते हमारी कमाई हैं , बना सकें तो बिगाड़ें भी मतजब दूसरों को अपना समझेंगे तभी माफ़ भी कर सकेंगे और तभी अंतर्मन भी स्वस्थ्य रहेगा


बातों में नमी रखना
बातों में नमी रखना
आहों में दुआ रखना
तेरे मेरे चलने को
इक ऐसा जहाँ रखना


जूते तो मखमली हैं
चुभ जायेंगे फ़िर काँटें
जो अपने ही बोए हैं
छाले न पड़ जाएँ
चलने को जँमीं रखना


चलना है धरती पर
हो जायेगी मूक जुबाँ
मुस्कानों पे फूल लगा
पँखों में दम भरके
सबकी ही जगह रखना


बच्चों सा निश्छल हो
पुकारों में वो चाहत हो
आसमानों में बैठा जो
उतरने को आतुर हो
अन्तस को सजा रखना

मंगलवार, 31 अगस्त 2010

परवरिश ( parenting )

बच्चों का पालन-पोषण आज जब औरतें पुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर चल रहीं हैं , परिवार विघटन की ओर हैं , ये स्वाभाविक है कि बच्चों के पालन पोषण के लिए कम वक़्त मिले | बगीचा लगाना आसान है , माली की तरह परवरिश करना कठिन है | पौधों को कितनी खाद , कितना पानी , कितनी धूप-छाया , कैसी जमीन चाहिए ये माली का फ़ैसला होता है | इसी तरह बच्चों को कितना लाड़-दुलार , कितना अनुशासन , कितना आहार , कैसा व्यवहार देना है , ये माता-पिता का फ़ैसला होता है | परिवार छोटे होने से व माओं के नौकरी-पेशा या व्यवसाई होने के कारण वक़्त की भी कमी हो गई है , ऐसे में किन बातों का ध्यान रखें कि बच्चों का सही पालन-पोषण हो सके ताकि वो एक ऑल-राउन्ड व्यक्तित्व के रूप में उभरें और हम अपने कर्तव्य निभाते हुए एक संतुलित व्यक्तित्व बन कर दोनों ओर सामंजस्य बिठा सकें ? 

१.बच्चे की हर छोटी बड़ी जरुरत का ध्यान रखते हुए उसे सुरक्षा की भावना से भर दीजिये | आपकी अनुपस्थिति में भी उसे असुरक्षा नहीं महसूस होनी चाहिए , उसे लगना चाहिए कि हर परेशानी में आप उसके साथ हैं | कई बार उसे दूसरों के जैसे कि क्रच में भेजना पड़ता है , उसकी जरुरत का सामान , पसंद की चीजें उसके साथ जरुर रखें | 

२. अपने आचरण से बच्चे को नैतिक मूल्य सिख्लाइये | छोटी-छोटी बातों पर बिगड़ना , आक्रोश , आडम्बर या जाने अन्जाने झूठ बोलना , मानवीय मूल्यों को पीछे रखना है | बच्चे के लिए माता-पिता रोल मॉडल होते हैं , नक़ल कर के सीखने में उन्हें देर नहीं लगती , कहने से ज्यादा कर के दिखाना आसान और प्रभाव-शाली तरीका है |अगर आप बच्चे से कहते हैं कि कोई फोन आए तो कह देना कि हम घर पर नहीं हैं , तो ये उसे कन्फ्यूज कर देगा , क्योंकि वैसे आप उससे कहते होंगे कि झूठ बोलना पाप है और ख़ुद झूठ बोल रहें हैं | 

३. बच्चों से बहुत बड़ी बड़ी अपेक्षाएं मत रखिये | हर बच्चा एक अलग विशेषता लिए , अलग अलग शारीरिक व मानसिक क्षमता वाला होता है | सफलता बहुत कुछ अवसर पर भी निर्भर करती है , इसलिए आप अपने कर्तव्य से पीछे न हटें | बड़ी अपेक्षाओं पर खरा न उतरने पर निराशा पैदा होती है | 

४. 'ये न करें , वो न करें ' वाली भाषा की जगह 'ये करें , वो ऐसे करें ' वाली भाषा का प्रयोग करें | नकारात्मक भाषा से बच्चा चिढ़ने लगता है , इसलिए अच्छा है कि हर बात का सकारात्मक पहलू दिखाया जाय | 

५. हर अच्छे काम पर बच्चे की पीठ जरुर थपथपाएं , बड़े बड़े उपहार देने का लालच बच्चे को बिगाड़ सकता है , वो पलट कर माँ बाप को ब्लैक मेल भी कर सकता है , ये दिलाओ तो ये कर दिखाऊंगा , वो ऐसा कह सकता है | जरुरत की चीजें दिलाने में (अपनी चद्दर के अन्दर ) कोई हर्ज तो नहीं है , पर इससे उसकी दिशा भटक सकती है , भौतिक सुख-सुविधाएं ही सब कुछ हैं , ऐसा सोच कर वो बड़ी आसानी से यानि छलाँग लगा कर इन्हें पाना चाहेगा , मेहनत नहीं करना चाहेगा जो काम लाड़ से दी गई थपकी कर सकती है , वो जादू इन चीजों में नहीं है यानि बच्चे को साहस से भर दीजिये | 

 ६ . दूसरे बच्चों के साथ व भाई-बहनों की आपस में न तो तुलना कीजिये न ही पक्षपात करिए तुलना करने से द्वेष पनपने लगता है , बच्चा हतोत्साहित होगा | 

७ . बच्चों पर कभी भी शारीरिक बल का प्रयोग नहीं करना चाहिए , पीटने से बच्चे ढीठ हो जाते हैं जो काम प्रेम कर सकता है , वो बल प्रयोग से नहीं हो सकता | 

८. बच्चे के साथ आपका रिश्ता मित्रवत हो , ताकि वो आपके साथ हर बात बांटे । आहार , व्यवहार , विचार , व्यायाम , अनुशासन , सब अपने व्यवहार से सिखलाइये । ये चीजें सुनने में भारी लगतीं हैं मगर अगर कर्तव्य के प्रति सच्चा समर्पण है तो ये भारी नहीं हैं । 

९. सही ग़लत की पहचान कराने के बाद , कोशिश करें , कभी कभी अनदेखी करने की , ताकि वो स्वतन्त्र क़दमों से भी चल सके | हर वक्त आप उसके साथ नहीं होंगे , वो अपने क़दमों से यानी अपने सहारे चल कर एक मजबूत व्यक्तित्व के रूप में उभरे , इसके लिए कुछ निर्णय उसे ख़ुद लेने दें | हर जरुरत के वक्त पथ-प्रदर्शक की तरह आप उसके साथ हैं ही | 

१०. बच्चों को पढ़ाई या किसी न किसी कलात्मक या रुचिपूर्ण काम में व्यस्त रखें ताकि वो खालीपन या बोर होने की शिकायत न करें | खाली दिमाग ही शिकायतें करता है | 

११. खाना पौष्टिक , हाइजीनिक व विविधता लिए होना चाहिए , ये तो हर माँ बाप जानता है | जंक फ़ूड से बचना चाहिए | खाने में सारे फ़ूड ग्रुप्स होने चाहिए ; फल ,सब्जी , दूध , दालें, अनाज , मेवे , इत्यादि | 

२. अपना तनाव बच्चों पर कभी न उतारें , उन्हें समझ ही नहीं आएगा कि उन्होंने क्या और कितनी भारी गलती की | उन्हें बेवजह सजा मत दीजिये | 

१३ . जब भी कभी कोई समस्या खड़ी हो जाए , उसे स्वीकार करें , बच्चे के साथ मिल कर उसका हल ढूँढें | जिंदगी को सहज बनाएं , और ज्यादा परेशानियों को निमंत्रण न दें | 

१४. आज में जीना सिखाएं , वर्तमान का भरपूर आनन्द लें , खुशी मनाने का कोई भी मौका हाथ से न जाने दें | बच्चे के साथ मौज मस्ती के लिए वक्त जरुर निकालें ताकि वो आपके साथ वक्त बिताने के लिए उत्सुक रहे | 

बचपन आशीर्वाद है , अपने किसी कर्तव्य से पीछे न हटें | ये आपका रास्ता है , जैसे रेलगाड़ी को एक पटरी मिली होती है , इस ट्रैक पर आपको चलना है | ये आप पर है कि आप इसे कितना सहज , कितना सुंदर बनाते हैं | आप चुने गए हैं इस काम के लिए , किसी भी परिस्थिति से पीछे न हटें |

Parenting In the age of today where women and men are working equals, family size is becoming smaller, it is natural that the time to raise children is getting lesser and lesser. It is easy to plant a garden, what's tough is to nurture the garden. The amount of manure, water, sunlight exposure required by a plant is known only to a gardener, it is all done based on his judgement. Exactly the same way it is a parent who decides the quantity of love, affection, diet given, discipline, mannerism to be taught to their child. Nuclear families with working moms have created a shortage of time. In such a scenario, what are the key factors to be kept in mind so that the child is nurtured to be an all-rounder and we are able to carry out our duties, striking the right balance between the personal and professional front? 

1. Keep in mind all big small wants of the child, make him/her feel secure. Even in your absence, he shouldn't feel insecure, he should feel that you will take care of everything, be around him in all troubles. There are times you may have to leave the child with someone else for example in a crutch -make sure things he likes or needs should be with him. 

2. Your conduct teaches moral value to the child. Getting angry on little things, irritation, pride, knowingly or unknowingly spoken lies are all like keeping moral values behind. For a child, his parents are the role models, learning by seeing is easier for the kids. Teaching by actions is more effective than teaching by words. if you and your spouse never use words like 'sorry' 'thank you' 'please' while interacting with each other and still try teaching a child to do so. It will confuse him as you are not practising what you want to teach. 

3. Do not keep very high expectations from the child. Every child is special -has his own talents, mental and physical strength. Success is determined by very few opportunities so you should not fail on your duty. 

 4. ' Do this, don't do that' instead of using phrases of the kind, use phrases like 'do this, do that like this'.The pessimistic approach irritates a child so it is better to show the optimistic face of everything to him. 

 5. You need to give a pat on the back to the child for everything good he does. Giving big gifts can lure him towards wrong. He may even try to blackmail by saying I would do this if I get this, else I wouldn't. Providing a thing required (within your budget) is not wrong but this may misdirect him. He may perceive that materialistic gains are everything, thinking of which he may want an easy jump to get them. Would not prefer working for it. The magic that an affectionate pat on the back can do, cannot be done by such gifts. It is important to develop courage in the child. 

 6. Do not compare your child with others or even with the siblings, neither should you be biased towards anyone. Both lead to jealousy and the child loses self-confidence. 

 7. Do not use physical strength on your child, hitting a child will only result in stubbornness. Something that can be done by love can't be done by force. 

 8. Keep a friendly relationship with your child so that he can share things with you. Behaviour, thoughts, exercise, discipline should be all a part and parcel of your nature. These things sound heavy but if you work towards your duty with full devotion then these things are simple. 

9. After teaching him the identification of right and wrong, try to give him the opportunity to make his own decisions and be a silent observer sometimes. You may not accompany him in everything, he should be able to move on his own, only then can he have a strong personality. In case he needs support you are there to guide him. 

10. Try to keep the child busy with something creative or anything that interests him. He shouldn't complain of boredom. Only an empty mind cribs.

11. Food should be healthy, hygienic and should have a variety to it. This is known to all the parents. Junk Food should be avoided. All food groups should be covered in the diet: fruits, vegetables, milk, cereals, pulses, dry fruits etc. 

12. Do not release your tension or stress on the child. He would fail to understand where he went wrong. Do not punish him without a mistake. 

13. Whenever a problem arises, accept it and try looking for its solution involving the child. Make life easier and do not add complexities to your life. 

14. Learn to live in present, make most of today, do not lose any opportunity to enjoy. Make sure to spend time with your child so that he looks forward to being with you. 

 Childhood is a boon, do not step back on any of your duty. This is your way like a train has an assigned track and has to move on it. It is up to you to make it easy and fun. It is you who has been selected for this work, do not hesitate to face situations.