बुधवार, 24 जून 2009

दुःख का असर कैसे न लें


जब कोई कुछ बुरा कहता है तो गुस्सा आता है , जब उसने कहा है तो कैसे असर न लें ? इस प्रश्न का उत्तर ये हो सकता है कि जो कुछ उसने कहा उसे कौन सुन रहा है ? मेरा कान , है न , क्या मेरा कान ही मैं हूँ ? नहीं , कुछ इस शरीर से अलग शरीर के अन्दर ही है जो सुन रहा है , यानि आत्मा वो नूर जो परमात्मा से अलग होकर इस शरीर को धारण किये हुए है | आँख , नाक , कान , पूरा शरीर तो साधन मात्र है | जब मैं सिर्फ शरीर हूँ ही नहीं , मैं तो एक नूर हूँ तो बाहरी सुख दुःख का असर मैं अन्दर गहरे आत्मा तक क्यों उतार लेता हूँ ?


आत्मा में बहुत ताकत होती है | मन क्योंकि नीचे की तरफ लुढ़कना ही जानता है और हमें बहका लेता है , इसी वजह से अपनी ताकत को हम भुला बैठते हैं | शरीर के सुख दुःख या किसी के कहने सुनने की वजह से हुए क्लेश प्रारब्ध वश आयेंगे ही , मगर हम उनके वश में होकर अपनी जिन्दगी को और जटिल तो नहीं बना रहे ? ये तो एक गुजर जाने वाला शो (नाटक) है , हम इसे जितना हो सके सुगम बनायें |


एक और तरीका है , दुःख से अलग रहने का , दूसरे ने जो कुछ भी कहा उसके पीछे कारण देख सकने वाली दृष्टि को पैदा कर लें | ये कारण कुछ भी हो सकते हैं जैसे अज्ञानता , तथ्यों से अवगत न होना , तनाव-ग्रस्त होना , असुरक्षा की भावना , अपने आपको सुरक्षित तरफ रखने का रवैया , आडम्बर-पूर्ण जीवन या फिर चालाक लोगों के संपर्क में आ कर उसका दृष्टिकोण ही भटक चुका हो | हमारे व्यक्तित्व की खामियों के लिए जिम्मेदार एक बहुत बड़ा कारण है असुरक्षित बचपन | जब ये देख सकने वाली आँख यानि नजर पैदा कर लेंगे तो दूसरे पर गुस्सा नहीं आएगा , करुणा आयेगी | हो सके तो उसे बदलने की कोशिश करें , इसके लिए उसे सचेत करते हुए थोडा गुस्सा भी करना पड़े तो ऊपरी तौर पर करें मगर इस गुस्से को अपने अन्दर उतार कर हलचल मत मचानें दें |


मेडिटेशन का मतलब तो पता नहीं , पर हाँ मुझे पता है दूसरे को माफ़ कर देने से अपना मन शान्त रहता है और ये किसी भी तरह से समाधि से कम नहीं है |


कितने भी असहनीय दुःख आयें ये मत भूलें कि परमात्मा उसी तरह हमें संभाले हुए है जिस तरह एक कुम्हार बर्तन को सही आकार देने के लिए बाहर से ठोकता है मगर अन्दर से दूसरे हाथ से हौले-हौले थपकियाँ देकर सँभाले रहता है और टूटने से बचाए रखता है | ये थपकियाँ हैं हमारी जीवनी-शक्ति , प्राण-शक्ति .....परमात्मा का प्यार .....|