रविवार, 11 जनवरी 2009

सन्तुलन बना कर चलिये

सारा खेल सन्तुलन का ही है सन्तुलन बिगड़ते ही जीवन गड़बड़ा जाता है ।आपको सन्तुलन बना कर चलना है , कथनी और करनी में , धर्म अर्थ काम और मोक्ष में , धन संचित करने और खर्च करने में , अन्तर्मन व बाहरी जगत में ।आप वही कहें जो आपको करना है वरना कोई आपकी बात का विशवास नहीं करेगा ।धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष का अपना-अपना स्थान है ; इनमें सामंजस्य बिठाना , अपनी मर्यादाओं को कायम रखना है ।धन संचित करने के लिए कहा जाता है कि बूँद बूँद से घट भरे , भविष्य के लिये थोड़ा थोड़ा नियमित रूप से धन अलग से जरुर रखें ।खर्च अपनी चादर के अन्दर ही करें ।अगर आपके पास पर्याप्त मात्रा में धन है तो आपको धन से दूसरों की मदद अवश्य करनी चाहिये ।  धन होने का फायदा उठायें ; शिक्षा पर , मित्रों का सम्मान करने में , जरुरतमन्दो की जरूरतें पूरी करने में खर्च करें ।अन्तर्मन और बाहरी जगत का सन्तुलन सबसे आवश्यक है ।आपका मन कुछ कहता है , बुद्धि कुछ और करवा डालती है ; विवेक कुछ कहता है , मन कुछ और करवा डालता है ।आप परेशान हैं किसी के व्यवहार से , गलाकाट प्रतियोगिता से , जिंदगी के अभावों से , मजबूरियों से ।अपना वश कहीं नहीं चलता ऐसे में अगर आप अन्दर के जगत का बाहरी जगत के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाते तो सन्तुलन बिगड़ जाता है ।अन्तर्मन को शांत रखना जरुरी है ।ईश्वर सबसे प्यार करते हैं , उनसे भी जो आपके आस पास इन परिस्थितियों के कारण स्वरूप हैं । उनके इस व्यवहार के पीछे भी कोई कारण होगा , जब कारण जानने वाली दृष्टि पैदा कर लेंगें तो माफ़ करना भी सीख लेंगें । हमारे सपने कितने भी बड़े-बड़े क्यों न हों , उनमें सबसे बड़ा सपना मानवीय मूल्यों पर खरा उतरने का ही होना चाहिये ।इस रास्ते पर चलने वाले का साथ ईश्वर देता है , उसका मन शांत रहता है क्योंकि वो सबसे प्यार करता है ।मन के शांत रहने से बाहरी जगत के साथ तालमेल बैठाना आसान रहता है ।हर दिन एक नया दिन है , जिसे आप पूरी जीवन्तता से जियें कि देखें आज ईश्वर ने क्या-क्या उपहार संजोये हैं । हमेशा सब कुछ अच्छा ही हो ऐसा जरुरी नहीं होता , पर हर हालत में जीवन्तता बनाए रखने से हालात बोझ नहीं लगते ।और कौन जानता है कि असीमित जीवनी शक्ति के साथ आपका कोई छोटा सा निर्णय भी किसी महान कर्म का जन्मदाता हो ।खुशी से चलना एक अर्थ रखता है उम्र त्यौहार है और खुशी सौगात ।