गुरुवार, 26 नवंबर 2009

सूरज के हिस्से धूप है


जब कोई निश्छल मन किसी की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाये और उसके लिए ह्रदय का द्वार खुले , कोई उमँग से उसका स्वागत करे ......? शायद किन्हीं ऐसे ही पलों में अमृता प्रीतम ने ये पंक्तियाँ लिखी होंगी ........


सूरज देवता द्वार पर आ गया
किसी किरण ने उठ कर स्वागत न किया


अपनी अल्हड़ सी उम्र में इसे पढ़ कर कुछ समझ तो नहीं आया था .....हाँ कुछ रीता रीता सा महसूस हुआ था .....,...पर आज जब समझा है तो बहुत टीसता है | हर लिखने वाला अच्छी तरह जानता है कि उसकी रचना का जन्म कहाँ , किससे और किन हालात में हुआ , वो कितनी मौलिक और कितनी उधार की है | एक बार ब्लॉग पर ही पढ़ा था कि इन्सान नया कुछ नहीं लिखता , पुराने लिखे से ही विचार लेकर उसको नए सिरे से लिखता है | जो मैं लिखने जा रही हूँ वो अमृता प्रीतम की इन्हीं दो पंक्तियों और भोले मन की रोज रोज की टूटन का नतीजा है .......


अपना सा मुँह ले के लौटा है सूरज
किरणों से उठ कर स्वागत न हुआ
द्वार पर आया जब सूरज
सूरज का सत्कार न हुआ
कैसे भूले अपनी फितरत को
सूरज है सुबह , आशा ,
निश्च्छलता और निष्पक्षता का नाम
मत सिखाओ दुनिया का चलन
न ये क़ैद होगा अँजुरी में
न होगा तब्दील अन्धेरे में
थक जाता है सूरज भी मगर
कब किरणों की चुहल से आज़ाद हुआ
सूरज के हिस्से धूप है
' छाया ' न सूरज का नसीब हुआ
बदल देता किस्मत सूरज
किरणों से ऐतबार न हुआ

सोमवार, 9 नवंबर 2009

खिल जाए हर मन की कली

दिवाली गुजरे तो बहुत दिन हुए , कल उसी बेटे का बीसवाँ जन्मदिन , जो दिवाली वाले दिन बड़े संभाल कर इस दिये को दिल्ली से घर लाया और ख़ुद अपने हाथों से इसमें तेल डाल कर , बत्तियाँ लगा कर जलाया भी उसी ने |मन बेतहाशा खुश हुआ कि वो अन्तर्मन से एक खुशी के साथ साथ एक जिम्मेदारी से जुड़ा.....कहने सुनने में ये बातें भारी लगती हैं , इन्हें शब्द देना भी मुश्किल सा ही लगता है , पर है तो सच्चाई ही | फ़िर उसकी बहनों ने दिये के और उसके फोटोग्राफ्स खींचे ....|

नन्हा दिया कह रहा है

खिल जाए हर मन की कली

निखरा हूँ मैं जिस तरह

हो दिया बाती का मेल

इस तरह हर गली

मुस्कराएँ साथ मिल कर

उत्सव हो हर घड़ी

पकडें जो हाथ मिल कर

हो सदा ही दीवाली

सँदेश इतना है

मन चुक जाए

तम की हो जब जब साजिश

प्रेम का हो तेल

सहयोग हो साथी

लगन की हो अगन

दूर जहाँ तक जाती हो नजर

ज्ञान के हों दीप जगमगाते

धैर्य से झिलमिलाते

आलोकित हो जाता पथ

खिल जाए हर मन की कली