सोमवार, 13 जुलाई 2009

माहौल का हिस्सा बन कर जियें


किसी भी विपरीत परिस्थिति का सामना आप आसानी से कर सकते हैं यदि आप पूरी तन्मयता से उसका समाधान खोजने में जुट जाते हैं | आप सोचते हैं कि दूसरे लोग मुझे कहें या बिनती करें तभी मैं उस काम को करुंगा , यानि आप मानसिक रूप से उस माहौल से परे हैं , आपके अन्दर स्वीकार भावः है ही नहीं | जब अस्वीकार भावः रहता है , तनाव साथ ही आ जाता है |


एक ही युक्ति है कि आप सबको अपना समझें , सामने जो भी परिस्थिति आये , हर वक़्त इस बात के लिए तैयार रहें कि आप उसे सकारात्मक लेते हुए अपनी तरफ से वो सब करेंगे जो आपकी पहुँच के अन्दर है | याद रखें ये आप दूसरों के लिए नहीं अपने लिए कर रहे हैं | दूसरों के लिए किये गए कर्म में आप फिर उम्मीद लगा लेंगें | वैसे भी ये स्वीकार भाव आपको ही खुशी देने वाला है |


किसी भी समस्या के वक़्त उससे भागने से अच्छा है , उस माहौल का हिस्सा बन कर जियें | समस्या चाहे आपकी हो या किसी और की , अगर आपके सामने आई या आपकी जानकारी में है तो आपका कर्तव्य बनता है कि आप उससे हर सम्भव तरीके से निपटने की कोशिश करें | सामना करते वक़्त , यानि आप पलायन नहीं कर रहे , ये खुद में ही एक सकारात्मक प्रतीक है ; साहस , अपना-पन , स्वीकार-भावः स्वतः ही आपके पास चले आयेंगे |


ज़रा सोचिये , वस्तुस्थिति से भाग कर हम कितनी नकारात्मक ऊर्जा पैदा करते हैं , अकेले बैठ कर कुढ़ते हैं , दूसरों से नाराज रहते हैं और हमारा व्यक्तित्व , वो भी यही सब दर्शायेगा | स्वीकार भावः , अपनापन होने से आप एक अजब विष्वास से भर जायेंगें | जितना ज्यादा परिस्थितियाँ आपके विपरीत हों , भागने की बजाय आप उस माहौल का हिस्सा बनने की कोशिश कीजिये , अपने कर्तव्य हमेशा याद रखें , अपने साथ ईमानदार रहें | इसी ईमानदारी के फलस्वरूप आपका आचरण कभी आपको कटघरे में नहीं खड़ा कर पायेगा | खुशियों के मौकों पर तो ऐसा लगेगा जैसे झूमती हुई खुशियाँ आपके ही दरवाजे पर दस्तक दे रहीं हैं , छम-छम करती हुई और आँगन नाच रहा है |


सोमवार, 6 जुलाई 2009

शब्दों में कह रहा है


किसी भी मुहँ से उसका बखान हो , क्या फर्क पड़ता है , बस समझ में आये .....अनुभव कर सकें | शब्द देने वाला कौन .... प्रेरणा देने वाला वही , रास्ता दिखाने वाला वही ...

शब्दों में कह रहा है अशब्द अपना रूप
इतने रूपों में बह रहा है वो एक ही अरूप


कितना है अव्यक्त वो आँखों में देह की
व्यक्त है वो बस बन्द आँखों में नेह की


निः शब्द होता मन तो मिलता असीम से
प्रतिध्वनित होता ब्रह्म तो आत्मा की पहचान से


उत्सव है साँस-साँस पर अशब्द की मुरली की तान पर
आँख-कान बन्द हैं अशब्द की गाथा के गान पर