शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

सहज ह्रदय , सरल ह्रदय , शुद्ध ह्रदय


मन के पास वो ताकत है जिससे वो सामने वाले की आँखों का भावः समझ लेता है | कितना तेज चलता है मन नकारात्मक उठाने में | मन जब उदास होता है तो भी निकृष्टतम परिणाम सोच लेता है |जीवन का उद्देश्य समझ नहीं आता , पर इतना तो समझ आता है कि मन पर बोझ न हो तो ये खुश रहता है , तो एक ऐसा रास्ता निकालें कि व्यवहार और मन का तालमेल सहज हो | मन को दुनिया से आँखें न चुरानी पड़ें | छिपाव , आडंबर , स्वार्थी वृत्ति ये दुनिया को ठगने के लिए व्यवहार में उतरता है ; पर क्या ये अपने ही मन के सहज स्वभाव के प्रतिकूल जाना नहीं है , ये तो अपने आप को ठगना है यानि अपने ही मन पर हमारा नियंत्रण नहीं है | जो शक्ति हमें मन को गलत दिशा में भटकने से रोकने में लगानी लगानी थी , उसे हमने विध्वंस की तरफ लगा दिया | निश्छल मुस्कुराहट की जगह हमने कुटिल मुस्कुराहट चुनी | पलट कर क्या मिलेगा ?


अगर हम सामने वाले में भगवान का अंश देखें या उसमें भी अपनी जैसी ही आत्मा देखें तो फिर उसका बुरा कैसे चाह सकेंगे , उसका बुरा चाहने तक का मतलब है अपना बुरा करना | सामने वाले का भला समझते हुए सही व्यवहार करने से सन्तुलन भी बना रहेगा और मन भी शांत रहेगा |मन ऐसे शांत नहीं होगा , मन के अन्दर तह में जो बात आती है , उसे शांत करें , युक्ति से समझाओ | बहुत सारे तरीके हैं मन को शांत करने के | मन को आधार चाहिए , चलने के लिए ज्ञान की जूती चाहिए | अपने अपने पैर का नाप भी अलग है , मेहनत भी अपनी अपनी करनी होगी , उधारी मेहनत से न काम चलेगा न ही संतुष्टि होगी |